पारिभाषिक शब्द उन्हे कहा जाता है जो
सामान्य व्यवहार या बोलचाल की भाषा के शब्द न होकर ज्ञान के विभिन्न
क्षेत्रों से जुडे होते हैं । जैसे समाजशास्त्र, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र,वनस्पति विज्ञान,जीवविज्ञान,दर्शन,मनोविज्ञान,अर्थशास्त्र,राजनितिशास्त्र,तर्कशास्त्र,
गणित आदि। डा. भोलानाथ तिवारी के अनुसार विभिन्न ज्ञान विज्ञान या शास्त्र में जिनकी
अर्थ सीमा परिभाषित या निश्चित रहती हैं उन्हे पारिभाषिक कहा जाता है। तो स्पष्ट है
‘परिभाषा सापेक्ष होने के कारण ही इन्हे ‘पारिभाषिक’ कहा गया है।
यह कहना अतिशोक्ति नहिं होगा की पारिभाषिक
शब्दावली का निर्माण आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग
है। इसका विवेचन भाषा तथा समाज वैज्ञानिक दोन्हो स्तरों पर संभव हैं। भाषिक संरचना में सामान्य और पारिभाषिक शब्दों में खास अंतर नहीं हैं। परंतु
अर्थ की दॄष्टि से सामान्य और पारिभाषिक शब्दो के बीच अंतर अवश्य है। सामान्य शब्दो
को आवश्यक्तानुसार अभिधा, लक्षणा और व्यंजना इनमें से किसी भी रुप में ग्रहण किया जा सकता है। लेकिन पारिभाषिक शब्दों को नहीं। यहाँ
शब्द को अभिधार्थ में ही ग्रहण किया जाता है। साहित्यिक या सामान्य भाषा व्यवहार में
प्रभावोत्पादकता के लिए शब्द के अर्थ का विस्तार कर सकते हैं। परंतु पारिभाषिक शब्दावली
में यह संभव नहीं है। उदा- ‘आशा की किरण’ या ‘वह गधा है’। ये शब्द साहित्यिक या सामान्य
व्यवहार में लाक्षणिक अर्थों में प्रगट होते है।परंतु पारिभाषिक शब्दों में इस प्रकार
का विचलन कदापी संभव नहीं है। क्योंकि भौतिकशास्त्र में ‘किरण’ शब्द अपने मूल अभिधार्थ
‘प्रकाश की किरण’ के रूप में ही अपनाया गया है। वैसे ही –
‘गधा’
शब्द प्राणीविज्ञान में केवल ‘जानवर’ विशेष के अर्थ में ही ग्रहण किया जाता है। मूर्ख
या बेवकूफ के अर्थ में कदापी नहीं। इस प्रकार पारिभाषिक शब्द अपने विषय क्षेत्र में
एक ही अर्थ में ग्रहण किए जाते है। शास्त्रिय विषयों की अभिव्यक्ति के लिए पारिभाषिक
शब्दों का महत्व है। क्योंकि इस तरह के विषयों में यह बहुत आवशक होता है। वक्ता जो
कहना चाहता है या लेखक जो लिखता है वह श्रोता या पाठक तक ठीक उसी रूप में पहूँचना चाहिए।
न कि अर्थ विस्तार होकर। एक बात यह भी है कि ऐसा तभी संभव हो सकता है जब उस विषय की
संकल्पना या वस्तुसूचक पारिभाषिक शब्द सुनिश्चित है। या उस भाषा या विषय के सभी लोग
उस अर्थ में ही उस शब्द का प्रयोग करते हो। यदि अर्थ सुनिश्चित नहीं होगा तो वक्ता
की बात को श्रोता या लेखक की बात को पाठक अलग या दूसरे अर्थ में लेने की संभावना अधिक
रहेगी। सुनिश्चित पारिभाषिक शब्दों के प्रयोग से सबसे बडा फायदा यह होगा की आज किसी
विषय पर लिखी गई बात को भविष्य में भी लोग ठीक रूप में समझ सकेंगे। किसी भी भाषा के
पारिभाषिक शब्दों को विभिन्न आधारों पर भी बाँटा जा सकता है। * इतिहास के आधार पर.
* प्रयोग के आधार पर * सूक्ष्मता के आधार पर * श्रोत के आधार पर
* और विषय के आधार पर.
पारिभाषिक शब्दों का अर्थ बाह्य संरचना
से भी अधिक उनके गर्भ में निहित होते हैं। उदा- ‘रेखित चेक’ इसका सामान्य अर्थ है ‘एक
ऐसा चेक जिस पर रेखा खींची गई हो’ परंतु बैंकिंग के पारिभाषिक शब्द के रूप में इसका
तकनीकी अर्थ होगा ‘एक ऐसा चेक जिस के ऊपर बायीं ओर दो समांतर रेखाएँ खिंची हो जिसका
भुगतान उसी को हो सकता है जिसके नाम चेक कटा हो, चेक धारक को नहीं, आदि । पारिभाषिक
शब्दों की मूल प्रवॄत्ति अर्थ के सूक्ष्मिकरण की ओर होती है।जिसके कारण पारिभाषिक शब्द
किसी विशिष्ट या सूक्ष्म शब्द का वाचक बन जाता है। जैसे ताप, गरमी, उष्मा और उष्णता
के सामान्य अर्थो को संकुचित करके उनमें भेद
कर देता है, और उनके अर्थ लक्षणों को इन शब्दों के बीच परिपूरक वितरण में बाँटता है।
वह cold (ठंडा,अतप)
cooling (शीतन) refrigeration (प्रति्शीतन) chilling (द्रुतशीतन) के बीच तकनीकी भेद बरतता है। वह (किरण)
ray (किरणपुंज) beam और (विकिरण) radiation
में भी तत्वगत अंतर करता है। कुछ एक पारिभाषिक शब्दों
में निहित पारिभाषिकता या तकनीकी पण की मात्रा में अंतर भी होता है। कुछ में कम तो
कुछ में ज्यादा पारिभाषिकता की मात्रा होती है। कुछ एक पारिभाषिक तथा अपारिभाषिक दोन्हो
में प्रयुक्त होने की क्षमता रकते है। इसलिए कभी-कभी ऐसे शब्दों को पूर्ण पारिभाषिक
तथा अर्ध पारिभाषिक में विभाजित किया जा सकता है। जैसे अणु (molecule) परमाणु (atom) रेडियोएक्टिवता
(radioactivity) जीन (gene)
स्वनिम (phoneme) रूपिम (morpheme)उपस्वन (allophone) आदी। पारिभाषिक
शब्द अपने –अपने विषय क्षेत्रो में पूर्ण तकनीकी अर्थो में प्रस्तुत होते है। इनके
विपरित कुछ शब्द ऐसे होते है जो मूलतः पारिभाषिक
होते हुए भी एकाधिक ज्ञान की शाखाओं में प्रयुक्त
होते है। ऐसे शब्दों को कुछ विद्वान अर्धपारिभाषिक नाम से संबोधित करते है । डॉ.सूरजभान
सिंह के अनुसार पूर्ण और अर्धपारिभाषिक शब्दों के बीच की सीमा रेखा क्षीण और विवादास्पद
है। जैसे लाभांश (divident) प्रतिनियुक्ति
(deputation) प्रजातंत्र (democracy )अधिसूचना (notification) आदि। कई ऐसे
भी शब्द है जो संदर्भ के अनुसार तकनीकी अर्ध-तकनीकी और गैर-तकनीकी इन तीन्हो अर्थों
में प्रयुक्त होने की क्षमता रखते है। तकनीकी सामग्री के अनुवाद के अंतर्गत नियम पुस्तिकाओं
का समावेश होता है। जिनमें अनेक ऐसी संकल्पनाएँ होती है जो विषेश प्रकार की होती है।
अर्ध-तकनीकी के अंतर्गत स्थायी प्रकॄति की सामग्री माने विविध साहित्य, सामान्य आदेश
आदि का समावेश होता है। और गैर-तकनीकी के अंतर्गत सामान्य नियमावलियाँ आदि का समावेश
है। उदा- जैसे अंग्रेजीका speaker शब्द तीन भिन्न
अर्थों में ग्रहण किया जा सकता है। तकनीकी अर्थ ‘संसद का अध्यक्ष’ अर्ध-तकनीकी ‘लाऊडस्पिकर’
तथा गैर-तकनीकी वक्ता।
पारिभाषिक शब्दों के सामान्य तथा तकनीकी
अर्थों के बीच का संबंध पारदर्शी और अपारदर्शी भी होता है। एक बात ध्यान देने योग्य
है की पारदर्शी शब्दों के तकनीकी अर्थ स्वतः स्पष्ट होते है। उदा- हिन्दी का स्तनधारी
(mammal) आकस्मिक अवकाश
(casual leave) नपुंसक लिंग
(nature gender) स्त्रीरोग
विज्ञान (gynecology) मनोविकार
(psychiatry) शरीर रचना
(anatomy) रक्तश्राव
(hemorrhage) अस्थिरोग
विज्ञान (orthopedics) और त्वचारोग
विज्ञान(dermatology) इन में हिन्दी के शब्द अंग्रेजी के तकनीकी शब्दों की तुलना में
अधिक पारदर्शी है। इसके विपरीत कुछ पारिभाषिक शब्दों की बाह्य संरचना से उनके वास्तविक तकनीकी अर्थ का स्पष्ट बोध नही होता है। ऐसे शब्द
अपारदर्शी कहलाते है। अधिकर नाम पर बने पारिभाषिक शब्द प्राय अपारदर्शी होते है। जैसे
फारेनहाइट, वोल्टमिटर, एम्पियर, आदि। कई पारिभाषिक शब्द मिथ्यानाम (misnomer) भी होते
है। जो गलती से किसी भिन्न अर्थ में प्रयुक्त हो जाते है। उदा- gavil शब्द । यह हिन्दी
के घड़ियाल शब्द का अंग्रेजी लिप्यांतरण है। परंतु पह्ली बार गलती से ‘R’ की जगह ‘V’
पढ़ लिया गया। परिणाम स्वरूप बाद में इसी रूप में अज्ञानवश प्रस्तुत होता गया। कई बार
ऐसा भी देखने को मिलता है कि जिस समय वह शब्द बनाया गया हो उस समय वह शब्द संकल्पना
के अनुरूप होता है। आगे जाकर नई खोज के फलस्वरूप उसकी संकल्पना में परिवर्तन हो जाता
है। परंतु रूढ़ हो जाने के कारण वह शब्द उसी रूप में उपयोग में भी लाया जाता है। उदा-
मलेरीया (malaria) यह लेटिन मल (bad) तथा एरॉस (air) से मिलकर बना है। एक समय यह माना
गया था कि मलेरिया का रोग गंदगी या गंदी हवा से होता है। इससे यह नामकरण हुआ था। अनुसंधान
के बाद यह पता चला की यह बीमारी मच्छर के काटने से होती है न की गंधगी से। लेकिन रूढ़
होने के कारण इसके लिए मलेरिया शब्द का ही उपयोग होता गया। इसी प्रकार ‘pay’ शब्द
(पेमेंट) भुगतान का संक्षिप्त रूप है। परंतु इसे भ्रमवश वेतन के अर्थ में ग्रहण कर
चुके है। जब की सही रूप भुगतान है। बहुत कम पारिभाषिक शब्द अपनी संरचना के माध्यम से
तकनीकी अर्थो की संपूर्ण विविधता को एक दो शब्दों के भीतर समेट पाना संभव नहीं। सामान्यतः
किसी तकनीकी संकल्पना के विभिन्न अर्थ लक्षणों में से एक दो प्रमुख लक्षणों के आधार
पर मानकर संपूर्ण संकल्पना का नामकरण कर दिया जाता है। शेष अर्थ लक्षण परिभाषाओं के
माध्यम से प्राप्त किए जाते है।
मानकता: यदि पारिभाषिक शब्द मानक नही होगा तो वह सही अर्थ में पारिभाषिक
नहीं होगा। मानकीकरण प्रक्रिया का पहला चरण है। ‘रूपों की विविधता को कम करना’। मानकता
से पूर्व एक ही तकनीकी संकल्पना के लिए अधिक शब्द या रूप प्रचलित हो सकते है। ऐसे एकाधिक
शब्दों या रूपों में से एक शब्द रुप का चयन मानकीकरण का प्रथम चरण है। इसे विव्दान
हागेन(1966) ने कोडीकरण (codification) की प्रक्रिया कहा है। और फिटकार्डर ने
(1950) ने इसे अंतर्राष्ट्रीयता का गुण कहते है। न्यूस्तुप्नी (1970) इसे स्थिरीकरण
(stabilization) कहते है। कोडीकरण के फलस्वरूप समान विषय क्षेत्रो में काम करनेवाले
विशेषज्ञनों के बीच दूरी होने पर भी सफल संप्रेषण संभव होता है। साथ ही इस शब्दावली
में समरूपता आती है। इसका लक्ष्य ‘एक शब्द का एक ही अर्थ’। उदा- डायरेक्टर (director)
शब्द के लिए विभिन्न हिन्दी भाषी क्षेत्र में ‘निदेशक’, ‘निर्देशक’, ‘संचालक’, तथा
प्रबंधक आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है। इसी प्रकार इंजिनियर (engineer) शब्द के लिए
इंजिनियर, अभियंता और तंत्री शब्द का प्रयोग मिलता है। पर्यायों की इस विविधता के बिच
एक अर्थ के लिए एक शब्दरूप का चयन या निर्धारण शब्दवली की मानकीकरण प्रक्रिया का पहला
सोपान है। देश में राष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली के निर्माण का अभियान
इसी प्रक्रिया का एक अंग है। जिसका लक्ष्य पारिभाषिक शब्दावली के पर्यायो में यथासंभव
समरूपता लाता है। मानकीकरण का दुसरा चरण है विस्तारीकरण इससे तात्पर्य है ‘व्यवहार
या प्रकार्य की विविधता को अधिक से अधिक बढ़ाना। क्योंकि इसका प्रयोग क्षेत्र जितना
व्यापक होगा ये उतने ही अधिक मानक होंगे। इसी प्रक्रिया में इन शब्दों का प्रयोग परीक्षण
भी होता है। जिससे इन्हे सामाजिक स्वीकॄति या अस्वीकृति मिलती है। साथ ही इसी दौरान
शब्दावली का पुनरीक्षण और संशोधन भी होना संभव है। शब्दो का निर्माण करना अपने में
लक्ष्य नहीं बल्की प्रयोग तक पहूँचने का प्रथम सोपान है। नवे शब्दों की सार्थकता उसके
प्रयोग में है। यदी वे शब्द प्रयोग या प्रचलन में नही आ पातें तो व्याकरण और चयन की दॄष्टी से उत्कॄष्ठ होते हुए
भी निरर्थक है। प्रयोग सिद्धि ही ऐसे शब्दावली की असली कसौटी है। यह
प्रक्रिया भाषा को उसकी अंतिम मंजिल तक पहूँचा देती है। और अपने शैली वैशिष्ट व्यवहार
क्षेत्र के कारण अन्य व्यवहार क्षेत्रों की भाषा शैली से भेद बनाए रखती है। इसी को
हैलिडे मिकिन्तोरा और स्ट्रीवेन्स (1964) ने प्रयुक्ति (register) की संज्ञा देते है।
शब्द निर्माण: अपने व्यवहार में नई बातों की आवश्यता
आम बात है। लेकिन यह भी सत्य है कि जब किसी संकल्पना के लिए नए शब्द की आवश्यता होती
है तो तुरंत नए शब्दों का निर्माण करना कठीन होता है। ऐसे में पहला प्रयास यह होता
है की यथासंभव भाषा भंडार में उपलब्द ऐसे किसी शब्द को लिया जाता है। जो स्वतः स्पष्ट
हो। या वस्तु के गुणधर्म का अधिक बोध कराने में समर्थ हो। हिन्दी भाषा में भी तकनीकी
शब्दावली के निर्माण में इन्ही युक्तियों का प्रयोग होता आया है। जो निम्नलिखित है।
-
१. अर्थ विस्तार- इस में निकटस्थ बोध कराने वाले
उपलब्द शब्दों को नए तकनीकी अर्थ में रूढ़ कर दिया जाता है। ऐसे में वे शब्द पुराने
तथा नए दोनों अर्थों में प्रयुक्त होते है। - जैसे बिजली, आकाशवाणी,विमोचन आदि।
२.
अर्थ संकोच – भाषा के शब्द भंडार में ऐसे शब्दों को लिया जाता है जो निकटस्थ हो
और
व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता हो। इसी तरह के शब्दों के अर्थ को संकुचित कर किसी विशेष
तकनीकी अर्थ के लिए रूढ़ कर दिया जाता है। उदा- संसद (parliament) जनगनना (sensus) संस्कॄत
भाषा में इसका प्रयोग किसी भी प्रकार की सभा के लिए किया जाता था। इसी तरह जगनना का
सामान्य अर्थ जनों की गनना करना है। लेकिन अब सेनसस मात्र के लिए रूढ़ हो गया है।
३.अर्थ सर्जन: यहाँ शब्द उपलब्ध न होने
के कारण पूरी तरह नए शब्दों का निर्माण करना पडता है। शब्दों का निर्माण प्रायः धातु
या शब्द में प्रत्यय तथा उपसर्ग लगाकर या समस्त पद बनाकर किया जाता है। जैसे – संकाय,
(faculty) नसबदी, सर्वहारा, विमान-पारिचारिका, परियोजना (project) अभियंता
(engineer) आदि।
४. शाब्दिक अनुवाद: कुछ तकनीकी शब्द
मूल या मध्यस्थ भाषा के अनुवाद द्वारा प्राप्त किए जाते है।कभी-कभी इस प्रकार का अनुवाद
अनुदित भाषा के शब्द भंडार से मेल नही खाता
लेकिन
कोई भाषा समाज मध्यस्थ भाषा का सामु्हिक स्तर पर प्रयोग करता है तो इस प्रकार का शाब्दिक
अनुवाद सहज लगने लगता है। उदा- श्वेतपत्र, लालफिताशाही, वायुप्रदूषण, स्वर्णजयंती कालाधन
आदि।
५. अंग्रेजी शद्बों का ग्रहण: अंर्तराष्ट्रीय
शब्दों को या ऐसे शब्दों को जो हिन्दी में रच पच गए हैं और अत्याधिक प्रचलन में हैं,
यथावत ग्रहण कर लिया जाता है। उदा- बैंक, स्टेशन, नोटिस, बल्ब, हीटर, रेलवे आदि। कुछ
शब्दों का उच्चारण व लेखन की दृष्टि से हिन्दी करण कर लिया जाता है। जैसे- अकादमी,
कामदी, त्रासदी, तकनीकी डॉक्टर आदि।
६. मिश्रपद्धति: इस पद्धति में अंग्रेजी
शब्दों में हिन्दी के प्रत्ययों को जोडकर शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे- रजिष्ट्रीकॄत,
कार्बनिकरण, शेयर धारक, कोडीकरण आदि।
अनुवाद: अनुवाद में विचारों का एक भाषा से दूसरी
भाषा में रूपांतरण होता है। हिन्दी में तकनीकी शब्दों या पर्यायों के निर्माण में अनुवाद
पर्याय प्रक्रिया की बुहुत बडा योगदान रहा है। अनुवाद पर्याय में भी मोटे तौर से सामान्य
अनुवाद प्रक्रिया की तरह दो युक्तियों का विेशेष उपयोग किया जाता है। एक शब्दिक अनुवाद
तथा दूसरा भाषानुवाद। उदा- (green revolution) के लिए हरित क्रांति, (black money)
के लिए कालाधन। वैसे ही (out station cheque) के लिए बाहरी चेक,यह भाषानुवाद है। अनुवाद
करते वक्त तकनीकी शब्दों की भूमिका भी महत्व पूर्ण होती है। विशेषकर ज्ञान विज्ञान
तथा टेकनालॉजी के विषय में। क्योंकि तकनीकी पर्याय जहाँ एक ओर अनुवाद में सहायक होते
है वही दूसरी ओर उचित प्रयोग न करने पर भाषा में दुरूहता भी आ जाती है। उदा- (food
ministry) खाद्य मंत्रालय के लिए भोजन मंत्रालय आदि। कभी-कभी एक ही अंग्रेजी तकनीकी
शब्द के लिए अलग-अलग विषय क्षेत्रो या संदर्भो में अलग –अलग पर्यायों के प्रयोग की
भी जरूरत पड़ती है। जैसे- (charge) के लिए कार्यभार- प्रशासन में, व्यय- लेखा में, आरोप-
विधी में, उधार- वाणिज्य में, धावा- राजनीति विज्ञान में। वैसे ही एक और शब्द है
(credit) उधार या ऋण- अर्थ शास्त्र में, क्रेडिट-
शिक्षा में, श्रेय- साहित्य में आदि। ऐसे स्थिति में अनुवादक की बहुद बडी जिम्मेदारी
यह होती है कि शब्दों के संदर्भ और अर्थ को
ठीक से समझे और आवश्यकतानुसार योग्य पर्याय का चयन करें।.
॥………*………॥
Nice keep it up 😇
ReplyDeleteNice
ReplyDelete